बीजशोधन, रसायनों एवं बायोपेस्टीसाइड से शोधित कर बीजजनित/भूमिजनित रोगों के कारक को नष्ट करना होता है - सुनील कुमार अग्निहोत्री

वेबवार्ता(न्यूज़ एजेंसी)/अजय कुमार वर्मा
लखनऊ 8 अक्टूबर। बीजशोधन का मुख्य उद्देश्य रसायनों एवं बायोपेस्टीसाइड से शोधित कर बीजजनित/भूमिजनित रोगों के कारक को नष्ट करना होता है। बीजशोधन हेतु प्रयोग किये जाने वाले रसायनों/बायोपेस्टीसाइड्स की बुवाई के पूर्व सूखा/स्लरी के रूप में अथवा कभी-कभी संस्तुतियों के अनुसार घोल बनाकर मिलाया जाता है जिससे इनकी एक परत बीजों की बाहरी सतह पर बन जाती है जो बीज पर पाये जाने वाले शाकाणुओं/ जीवाणुओं को अनुकूल परिस्थितियों में नष्ट कर देती है।
     यह जानकारी अपर कृषि निदेशक (कृषि रक्षा), सुनील कुमार अग्निहोत्री ने आज यहां दी। उन्होंने बताया कि कृषि विभाग द्वारा अधिकारियों/कर्मचारियों के माध्यम से बीजशोधन कार्य को अभियान के रूप में क्रियान्वित कर समस्त ग्राम पंचायत में कृषकोें को प्रेरित किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि प्रदेश में फसलों को प्रति वर्ष कुल क्षति का लगभग 26 प्रतिशत क्षति रोगों द्वारा होती है रोगों से होने वाली क्षति कभी-कभी महामारीका रूप भी ले लेती है और इनके प्रकोप से लगभग सम्पूर्ण फसल नष्ट होने की सम्भावना बनी रहती है। बुवाई से पूर्व सभी फसलों में शत्-प्रतिशत् बीज शोधन का कार्य कराया जाना नितान्त आवश्यक है। उन्होंने बताया कि रबी की प्रमुख फसलों गेहूं, जौ, चना, मटर, मसूर राई/सरसों आलू एवं गन्ना के बीजशोधन हेतु संस्तुतियों के अनुसार प्रमुख कृषि रक्षा रसायनों-थिरम 75 प्रतिशत, डब्ल्यू0एस0 कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत, डब्ल्यू0पी0 ट्राइकोडर्मा हारजिएनम 2.0 प्रतिशत, डब्ल्यू0पी0 ट्राइकोडर्मा विरिडी 1.0 प्रतिशत डब्ल्यू0पी0 एवं स्यूडोमोनास फ्लोरीसेन्स 0.5 प्रतिशत डब्ल्यू0पी0 की व्यवस्था सुनिश्चित की जा चुकी है।
       अपर कृषि निदेशक (कृषि रक्षा), सुनील कुमार अग्निहोत्री ने बताया कि खाद्यान्न उत्पादन के राष्ट्रीय कार्यक्रम तथा बीजशोधन अभियान को सफल बनाने के लिए कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केन्द्र, स्वयंसेवी संगठन, स्वयं सहायता समूह, महिला संगठन, कृषि तकनीकी प्रबन्ध अभिकरण (आत्मा), राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, कृषि रक्षा अनुभागकी कीट/रोग नियन्त्रण योजना एवं प्रगतिशील किसानों के साथ-साथ कीटनाशी उत्पादक संगठन, थोक एवं फुटकर विक्रेताओं का सहयोग अपेक्षित है। :सतीश चन्द्र भारती