मुंबई। आधा महाराष्ट्र सूखे से पहले भी तंग था और आज भी तंग है। पहले आज के सत्तापक्ष के लिए यह बड़ा चुनावी मुद्दा हुआ करता था, अब यह आज के विपक्ष के लिए बड़ा मुद्दा है। न किसानों की समस्याएं खत्म हो रही हैं, न आत्महत्याएं रुक रही हैं। समस्या कुदरती है, लेकिन इसके बहाने सियासी फसलें काटी जा रही हैं। महाराष्ट्र में पिछले कई वर्षों से सूखा एक बड़ी समस्या बना हुआ है। 2014 में अपनी सरकार बनने के तुरंत बाद देवेंद्र फड़नवीस ने इस समस्या को समझते हुए जलयुक्त शिवार योजना पर सबसे पहले काम शुरू किया। इसके तहत बड़ी नहरों और बांधोंपर समय और पैसा गंवाने के बजाय गांव-गांव में वर्षा जलसंचय की योजना बनाई गई। राज्य के बहुत से गांवों में एक साथ काम शुरू हुआ। सिने अभिनेता नाना पाटेकर के नाम फाउंडेशन और आमिर खान के पानी फाउंडेशन सहित कई और संस्थाओं ने इस कार्य में सहयोग देना शुरू किया। काम जमीन पर दिखाई भी देने लगा। तमाम तालाब गहरे किए गए। हजारों किलोमीटर नहरों-नालों की सफाई कर उनकी क्षमता बढ़ाई गई। 2017 में अच्छी बरसात होने पर इनमें अच्छा जल संचय हुआ और लगा कि दु:ख कट जाएंगे। लेकिन 2018 में दैव फिर धोखा दे गए। आज खेतों में दरारें और बांधों में तल छूता जल साफ देखा जा सकता है। यहीं से शुरू होती है पलायन और बेरोजगारी की समस्या। खाली बैठा मराठवाड़ा और धनगर नौजवान आरक्षण का झंडा उठा लेता है। पिछले तीन साल से महाराष्ट्र ऐसे ही आंदोलन देखता आ रहा है। सरकार ने पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन कर मराठा आरक्षण का हल ढूंढने की कोशिश की है। लेकिन मराठा समाज अब भी संतुष्ट नहीं है। दूसरी मराठों को दिए गए आरक्षण के बाद धनगर (भेड़ पालनेवाला समुदाय) और मुस्लिम भी आरक्षण के लिए आंदोलनरत हैं। साम्यवाद समर्थित किसान संगठन भी अपनी बड़ी-बड़ी रैलियां लेकर मुंबई का रुख करते रहे हैं। हालांकि अब तक सरकार उन्हें समझाने-बुझाने में सफल रही है। सूबे में एक और बड़ा मुद्दा शहरी नक्सलवाद का भी है।
महाराष्ट्र में सूखे की समस्या पर काटी जा रही हैं सियासी फसलें