लोकसभा चुनाव बिहार में नए गठबंधनों के लिए कड़ी परीक्षा

बिहार की सभी 40 संसदीय सीटों पर चुनाव 11 अप्रैल से होने हैं। ऐसे में राज्य पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं जहां सियासी स्थिति, खास कर गठबंधनों की स्थिति साल 2014 के आम चुनाव के मुकाबले जबरदस्त ढंग से बदल चुकी है।   
बिहार उन सबसे बड़े राज्यों में से एक है जहां विपक्षी दलों को एक सतरंगा गठबंधन भाजपा की अगुआई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के खिलाफ चुनाव मैदान में है। यहां बीते पांच साल में कम से कम तीन बार गठबंधन बदल चुके हैं। अब लगभग सभी प्रमुख विपक्षी दल महागठबंधन में शामिल हैं। इससे राज्य की चुनावी समीरकण काफी बदल गया है। साल 2014 में आम चुनाव के बाद से कई बार गठबंधन बदलने को ध्यान में रखते हुए यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्य में गठबंधन के नए सहयोगियों के बीच वोटों का स्थानांतरण होता है या नहीं। इस लिहाज से बिहार वास्तव में परीक्षण का एक मामला बन चुका है।
अक्तूबर 2013 में, नरेंद्र मोदी ने पटना में एक रैली से भाजपा के आम चुनाव अभियान की शुरुआत की थी। उसमें उन्होंने बिहार के महत्व पर प्रकाश डाला था। मई 2014 में जब नतीजे सामने आए, तब बिखरे हुए विपक्ष को अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा। भाजपा की अगुआई वाले एनडीए ने राज्य में तीन चौथाई से अधिक लोकसभा सीट जीतीं। हालांकि एक साल बाद ही विधानसभा चुनाव में एनडीए को हार का सामना करना पड़ा। लेकिन भाजपा अब फिर से राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा है। इसलिए उसके दावे भी मजबूत हैं। दरअसल आम चुनाव न केवल प्रतिष्ठा की लड़ाई है, बल्कि पारंपरिक गढ़ को बनाए रखने का संघर्ष भी है।
ग्रामीण संकट, बेरोजगारी, राज्य को विशेष दर्जा देना, बुनियादी ढांचे के विकास की जरूरत और कानून-व्यवस्था की खराब स्थिति बिहार में प्रमुख चुनावी मुद्दे हैं।
एनडीए और महागठबंधन दोनों ही जाति के गणित को लेकर सावधान रहे हैं। भाजपा के उम्मीदवारों की सूची उच्च जातियों और अन्य पिछड़े वर्गों पर केंद्रित है। जदयू अत्यंत पिछड़े वर्गों और कुर्मी-कोइरी समूह से समर्थन हासिल करता है। जबकि लोजपा के पास अनुसूचित जातियों के बीच पासवान का आधार है। महागठबंधन को यादवों और मुसलमानों का समर्थन हासिल है। कांग्रेस और रालोसपा सवर्णों और कुर्मी-कोइरी के मतों में सेंध लगा सकती हैं, जो एनडीए का आधार है।
बिहार में विधानसभा चुनाव, लोकसभा चुनाव के 18 महीनों के अंदर होने की संभावना है। ऐसे में माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव यह बतलाएगा कि राज्य में अगली सरकार की कुंजी किसके पास होगी। इसलिए यह चुनाव क्षेत्रीय क्षत्रपों के राजनीतिक भाग्य का फैसला करने वाला हो सकता है, जिनमें से अधिकतर अपनी अगली पीढ़ी को नेतृत्व सौंप चुके हैं। इनमें राजद प्रमुख लालू प्रसाद, लोजपा प्रमुख व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शामिल हैं।