क्या कांग्रेस की न्यूनतम आय गारंटी योजना पलट पाएगी चुनावी पासा?

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गरीबों को 72 हजार रुपये सालाना की न्यूनतम आय गारंटी देने की घोषणा कर मास्टरस्ट्रोक खेला है। पार्टी को उम्मीद है कि इससे बालाकोट एयर स्ट्राइक से मोदी सरकार को मिली बढ़त रोकने में मदद मिलेगी। कांग्रेस का मानना है कि इस घोषणा के बाद मतदाताओं का ध्यान एक बार फिर गरीबी और रोजगार जैसे मुद्दों पर लौटेगा। यह वंचित भारतीय मतदाताओं को एकजुट करेगा और राहुल गांधी सरकार को जवाब देने के बजाय एजेंडा सेट करने वाले व्यक्ति के रूप में उभरेंगे। लेकिन पार्टी की राह आसान नहीं है। इसके लिए कांग्रेस को योजना की जानकारी गरीबों तक पहुंचाना, जातीय और आर्थिक समीकरणों को भी ध्यान में रखना होगा। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह एक महत्वपूर्ण नीतिगत घोषणा है, जो तेलंगाना रायथु बंधु, ओडिशा की कालिया और केंद्र सरकार की पीएम-किसान योजनाओं (जो सभी किसानों तक सीमित थी) की तरह भारत में कल्याणकारी योजनाओं की शक्ल बदल देगी। दीर्घावधि में राजनीतिक दलों को गरीबों को अधिक प्रत्यक्ष नकद सहायता प्रदान करने के लिए प्रेरित कर सकता है। लेकिन फिलहाल कांग्रेस के सामने बहुत कम समय में इसे चुनावी पासा पलटने वाला साबित करना होगा। हर गरीब परिवारों को प्रतिमाह छह हजार रुपये मिलेंगे, यह घोषणा सरल और आकर्षक तरीके से लोगों तक पहुंचाना कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती है। सोशल मीडिया के जरिये इस संदेश को पहुंचाया तो जा सकता है, लेकिन इसे संगठन के स्तर पर भी पहुंचाना होगा जैसा कि भाजपा बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं के जरिये जनता तक संदेश पहुंचाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ऐसा करते रहे हैं। कांग्रेस को पांच करोड़ परिवारों तक इस संदेश को पहुंचाना होगा। फिलहाल न तो लाभार्थियों की सूची मौजूद है और न ही इस अभियान के लिए पर्याप्त समय। इस योजना के कांग्रेस को आदिवासियों को जोड़ना होगा, जो भारत की सबसे गरीब आबादी है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, ओडिशा और झारखंड में 31 आदिवासी सीटें हैं। यदि कांग्रेस इन सीटों (ओडिशा छोड़कर अन्य राज्यों में भाजपा से मुकाबले में है) पर सेंध लगा लेती है तो बड़ा फायदा मिल सकता है। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इस मुद्दे को पार्टी यूपी में कैसे उठाएगी। यूपी में गरीबों, विशेष रूप से अनुसूचित जातियों का मुद्दा जोरशोर से उठाने पर मुकाबला त्रिकोण हो सकता है, क्योंकि इससे सपा-बसपा गठबंधन के वोटों में कटौती होगी और इसका फायदा भाजपा को मिल सकता है। इस फैसले से मध्यम वर्ग की नाराजगी भी कांग्रेस को झेलनी पड़ सकती है। बड़ा ओबीसी वर्ग नाराज हो सकता है। कांग्रेस के एक पदाधिकारी ने कहा,भारत में कोई भी सार्वजनिक रूप से गरीबों का समर्थन करने का विरोध नहीं कर सकता है। यहां तक कि अगर वे दुखी हैं, तो भाजपा इस पर सक्रिय रूप से प्रचार नहीं कर सकती है।